बुधवार, 18 जुलाई 2018

The Power of your sub conscious mind


The power of “THE POWER OF YOUR SUB-CONSCIOUS MIND” was firstly published in 1963 and it was written by dr Joseph Murphy who was an American minister.The whole book revolve arround the benaffits of our sub conscious mind. The best thing of this book is its self motivating attitude. I am surely saying that when you will read this book a positive environment will reach toward you.
The main centralized idea of this book is the power of our subconscious mind with the help of our subconscious mind we can get victory on our daily bases problems, sadness, dipression, dieseases etc. we will dominate to our problems and fear. We can gain a positive attitude where a enjoyefull life is waiting for us.
The book says that the big treasure house within us from which we can extract everything so we can live life gloriously and joylessly. For doing this we need to open our mental eyes. This book describes many of ways for opening our mental eyes. Mental healing is one of the best chapter of this book. It is a ram baad formula to get anything which we want.
Many of us are praying to god on reulearly bases. Some of them prays to god for fullfilling their need but the main thing is that everyone on this planet prays to god. This book describe that this prayer work as a mental healing of our brain. Therefor we say that prayer is also a mental healing of brain.
We can break our bad habbits, we can overcome to our fear, we can forgive to someone, we can get a happy marrital life and many more we get with the help of the power of our sub conscious mind.
  

बुधवार, 29 नवंबर 2017

धर्म की समझ


धर्म की समझ 






धर्म को अगर हम समझने की कोशिस करे तो हम उलझन में निश्चित ही उलझेंगे अगर हम इससे तटस्थ नहीं है. यहाँ उलझन हमारी मौलिकता से है, हमारी मनोवैज्ञानिक स्थिति से है. तटस्थता से यहाँ मेरा आशय नास्तिकता से बिलकुल नहीं है क्योकि नास्तिकता को भी उस वक़्त ही स्वीकृति दी जा सकती है जब व्यक्ति खुद नास्तिकता का अनुभव करे नाकि प्रभाव में आकर नास्तिकता का ढोंग करे. धर्म एक धारणा है तो इसे आप जिस नज़रिये से देखते है उसी रूप में परिभाषित कर सकते है. मेरे मुताबिक धर्म शब्द से तातपर्य धारण करने से है. पृथ्वी लोक में लगभग हर कोई, कोई न कोई धर्म धारण करे हुए है. किसी ने इस्लाम की टोपी लगा रखी है तो किसी ने सनातन का भगवा चढ़ा रखा है. कोई गॉड में मदमस्त है तो कोई गुरु नानाक की पगड़ी चढ़ा रखी है. कोई पारसी है तो कोई यहूदी परन्तु ऐसे बहुत कम मनुस्य है जो इनसे तटस्थ है और इन लोगो ने अपने आपको इन धर्मो की गंगा में बहने की बाजए आपने आपको किसी किनारे पर खड़ा कर लिया है. रामधारी सिंह दिनकर ने ऐसे लोगो को आउटसाइडर कहा है.
आज के आधुनिक( यहाँ आधुनिक कहने से मेरा अभिप्राय तकनीकी से है ) परिवेश में पृथ्वी के इस विश्वग्राम में धर्मो ने अपनी जड़े मनुस्य के मानशिक स्तर पर बिखेर रखी है यही एक कारन है की हर मनुस्य का अपने अपने धर्म के प्रति अंधश्रद्धा है, और ऐसे लोगो की लोगो की सोचने अवं समझने की शक्ति भी नाम मात्र की कही जा सकती है. इसी वजह से इन विभिन्न धर्मो में इनके ठेकेदार बैठे हुए है अवं धर्म में जो थोड़ा बहुत ठीक भी है उसे भी अपने मुताबिक तोड़ मरोड़कर कर इन लोगो के समक्ष उतार कर इनका शोषण कर रहे है.
इतिहास भी इस कथन का साक्ष्य है कि किस प्रकार क्रिस्चियन धर्म ग्रंथो में "पाप स्वीकरोक्ति दस्तावेज बना कर इन मासूम लोगो को ठगा जाता था.

आइए गहराई से इस बात को समझने के लिए हम दो उद्धरणों को देखते है
क्रिस्चियन धर्म ग्रंथो में यह लिखित था कि "पृथ्वी इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड का केंद्र है अवं सभी गृह, तारे, और नक्षत्र इसके इसके इर्द गिर्द परिकर्मा करते है"  परन्तु कॉपरनिकस ने जब इस कथन को अपनक वैज्ञानिकता के जोर से परास्त कर दिया तब उसे गिरफ्तार कर लिया गया अवं उस पर यह दबाव बनाया जाने लगा कि यह बाते जो उसने कही है वह सब झूठी है अवं चर्च में जाकर गॉड से क्षमा मांगे अवं सबके सामने अपना गुनाह कबूल करे, तब कॉपरनिकस ने उन धर्म के ठेकेदारों से कहा कि चाहे आपका धर्म ग्रंथो के अक्षर कुछ भी कहते हो लेकिन वैज्ञानिकता तो कुछ और ही कहती है और यही सचाई भी है. ऐसी भद्दी भद्दी बाते दुनिया के तमाम धर्म ग्रंथो में समाहित है . किसी धर्म ग्रंथो में कोई सूर्य को निगल रहा है तो किसी धर्म ग्रंथो में शरीयत के जरिये किसी व्यक्ति की मौलिकता को ख़त्म कर दिया जा रहा है.
एक बार की बात है, बुद्ध जंगल में कही जा रहे थे कि उनोहने देखा कि एक के पीछे पीछे एक जानवर आगे की दिशा में भागे जा रहे है. सुरुवात बुद्ध यह समझ नहीं पाए अवं जानने कि इच्छा से वे उन भागते हुए जानवरो के पास पहुंच अवं उनोहने एक हिरन को पकड़ा और पुछा ऐसा क्या हो गया जो तुम सब एक के पीछे एक भागे जा रहे हो तब उसने कहा प्रलय आने वाली है, तब बुद्ध ने उससे पूछा किसने बताया तब उस हिरन ने कहा मेरे आगे वाले ने बुध ने इस रहस्य को सुलझाने के लिए यही सवाल आगे से पुछा तब उस आगे वाले ने भी बुद्ध को यही उत्तर दिया. बुद्ध ने इस रहस्य सुलझाने के लिए सबसे आगे वाले से संपर्क किया सबसे आगे एक खरगोश भाग रहा थाम, बुद्ध ने उस खरगोश से पूछा कि क्या हुआ क्यों भागे जा रहे हो तब उस खरगोश ने बुध से कहा कि परलये आने वाली है तब बुद्ध ने पुछा किसने कहा कि परलये आने वाली है, तब खरगोश ने कहा कि मेरी माँ ने बताया था कि जब धरती हिलेगी तब परलये आएगी, तब बुद्ध ने उस खरगोश से कहा कि तुझे कब ज़मीन हिलते हुए महसूस हुई तब उस खरगोश ने कहा - जब में पेड़ के नीचे सो रहा था, तब बुद्ध ने कहा - कि कही कोई दाल तेरे अगल बगल गिर गयी होगी सयाद उससे तुझे  धरती हिलते हुए महसूस हो गयी होगी तब खरगोश ने कहा - ऐसा भी हो सकता है सयाद.
यही हाल हाल धर्मो का है मनुस्ये अपने पूर्वजो कि कही सुनी बाते जो धर्म को लेकर कही गयी है उन्हें मानता चला आ रहा है और आगे आने वाली पीढ़ी के समक्ष उतार रहा है अगर हम चाहकर भी इस धर्म कि सत्यता का पता लगाना चाहे ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार बुद्धा ने परलय के रहस्य का पता लगाया था तब भी हम पता नहीं लगा सकते है क्योकि हमे आगे कि कड़ी में मुर्दा लोग ही मिलेंगे.
मनुस्य बिना सत्य तलाशे ही अंध श्रद्धा में जीते चला आ रहा है भले ही उसके धर्म ग्रंथो कि बाते वैज्ञानिक स्तर पर कभी सत्ये साबित ना हो परन्तु यह बाते मनुस्ये केमानशिक स्तर को प्रभावित कर रही है.
मनुस्य का सबसे बड़ा डर हे "मृत्यु" और धर्म ने इस नब्ज को बड़े ही अच्छे ढंग से पकड़ कर मनुस्य का शोषण कर रहा है. तभी तो हमें हर धर्म ग्रंथो में "स्वर्ग" और "नर्क" की बाते सुन सकते है.
अगर हमें सच में इश्वरिये अश्तित्व या कहे सत्य की तलाश है तो हमे खुद ही इसे तलाशना होगा, हमे प्रकृति से जुडी हर एक पदार्थ को समझना होगा तभी हम उस सत्य को तलाश कर सकते है. नाकि उस भीड़ की तरह जो बिना देखे सुने ही उस अन्ध्सरद्धा में पड़ी है.  

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

आधुनिक पत्रकारिता: एक नज़र में

आधुनिक पत्रकारिता : एक नज़र में


किसी ने क्या खूब लिखा है - "यथासमे रोचते विश्वम तथेदं परिवर्तते". कवी या साहित्यकार को जैसा रुचता है वह संसार को वैसे ही आयाम में परिवर्तित कर देता है .
"साहित्य समाज का दर्पण है", यह कथन हमने सयाद कई बुधिजीविओ के जुबानो से सुना होगा परन्तु यह कथन शुरू से ही अप्रासंगिक रहा है क्योकि अगर साहित्यकार समाज को दर्पण दिखाने का ही काम करता तो साहित्यकार की समाज में कोई भूमिका एवं उसका कोई मह्त्व नहीं रह जाता, फिर सयाद ही कोई साहित्यकार की तुलना राजा या प्रजापति से करता. प्रजापति का काम ही समाज एवं राज्य को एक नई दिशा देना है ठीक उसी प्रकार एक अच्छे साहित्यकार की भूमिका भी समाज को एक नई दिशा देने का है, ताकि समाज एक उन्नत पथ पर अग्रषित हो सके.
पत्रकारिता जो की साहित्य का एक छोटा सा आयाम है, परन्तु इसकी भूमिका बहुत बड़ी है एवं समाज को अपने क्रियाकलापों से प्रभावित करने में एक बहुत ही बड़ी भूमिका निभाता है. परन्तु यहाँ कहते हुए अफ़सोस होता है की आधुनिक परिवेश में जहाँ इसकी सख्त जरुरत अपने इस समाज को है वँहा यहाँ अपने इस समाज से मुँह फेरता हुआ एक गलत रास्ते पर चल चूका है. अगर गहन तौर पर चिंतन किया जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा की पत्रकारिता ने जो गलत रास्ता अपनाया है वह पूँजीवाद की देन है, कॉर्पोरेट मीडिया ने समाज में अपनी जड़ता बिखेरे दी है, पैसे लेकर किसी एक पक्ष/राजनितिक पार्टी विशेष के हित में खबरों का प्रचार एवं प्रसार किया जा रहा है, मीडिया चैनल भी दलगत विशेष हो चुके है, जिसका जीता जागता उद्धरण ज़ी न्यूज़ है. राजनितिक पार्टिया इन चैनेलो के मालिकों को पैसे, पद, प्रतिष्ठा की लालच देकर अपना एवं अपनी राजनितिक दलों का काम आसानी से करवा रहीं है.
कॉर्पोरेट मीडिया ने आज के इस आधुनिक परिवेश में अपनी इस तुक्ष पत्रकारिता से समाज में एक नई मानसिकता को जन्म देने का कार्य क्र रहीं है और यह मानशिकता लोगों को धर्म के आधार पर एक दुसरे से दूर करने की है , यह मानशिकता लोगो को किसी एक राजनितिक दल विशेष के पक्ष में रूचि उत्पन्न करने की है इतियादी तरह का प्रोपगेंडा इन कॉर्पोरेट मीडिया चैनेलो द्वारा समाज की मानशिकताको लेकर चलाया जा रहा है.
भारत देश जिसको इतिहास में सोने की चिड़िया कहा जाता था,आज के आधुनिक परिवेश में उस सोने की चिड़िया पर जंग लग चूका है और यह जंग अत्यधिक जनसँख्या की है, बेरोज़गारी की है, गरीबी की है ऐसी न जाने कितनी समस्या का बोझ लेकर देश दबा पड़ा है परन्तु हमारी मीडिया चैनल्स इन समस्याओ की अनदेखी कर के धार्मिक अशवोहार्दता को बढ़ावा देते हुए " फ़तेह का फतवा " जैसे कार्यकर्म चलाते है,देश की बड़ी समस्या को दरकीनार करके हन्नीप्रीत एवं बाबा की खबरें मीडिया में छायी हुई है.  झूठी खबरों को लोगो के सामे पेश किया जा रहा है , हाल ही में घटित हुई घटना जो की जे एन यु परिषर के अंदर राष्ट्रवाद को लेकर हुई थी उस से सायद आप लोग परिचित होंगे जिसमे कनहिया कुमार पर राष्ट्र विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा था, एवं कई मीडिया चैनल्स इस मुद्दे को लेकर कनहिया कुमार को अराष्ट्रवादी सिद्ध करने में लग गए. kannahiya कुमार के विरोध में एक इनके द्वारा एक प्रोपगेंडा चला दिया गया था उस वक़्त परन्तु यह जो भी खबर कन्हैया कुमार को लेकर मीडिया में चलाई गई थी सब झूठी खबर साबित हुई एवं कोर्ट के द्वारा कन्हैया कुमार निर्दोष साबित हुआ और कोर्ट ने यह भी कहा की जिस वीडियो में कनहिया कुमार को राष्ट्र के खिलाफ अप्सब्द कहते हुए न्यूज़ चैनल्स पर दिखाया जा रहा था वह वीडियो डॉक्टरोव यानी झूठी पायी गयी. इस घटना से आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है की अपनी न्यूज़ चैनल्स कितने विश्वसनीय है.
समाज की संवेदनाओ से कॉर्पोरेट मीडिया एवं न्यूज़ चैनल्स खेल रहें है. कॉर्पोरेट मीडिया ने अपने इस समाज को एक नई दुनिया दे दी है वह बाहरी रूप से ठीक उसी प्रकार है जैसे - " एक चूहे को फसाने के लिए जाल के बाहर एक रोटी लागते है ताकि चूहा लालच वश उस रोटी के पास आये और उस चूहे दानी में फस जाए ठीक इसी प्रकार कॉर्पोरेट मीडिया यही खेल समाज के साथ खेल रहीं है.
हाल ही में ब्रिटैन की संसद (सिनेट) में पोस्ट ट्रुथ नामक सब्द पर काफी चर्चा हुई थी. पोस्ट ट्रुथ सब्द का अर्थ मनोवैज्ञानिक सत्य है जिसका अर्थ यह यह होता की वह खबर जो की सत्य नहीं होती है परन्तु ऐसे पैस की जाती है की वह खबर आपको मोवैज्ञनिक एवं जहनि तौर पर सत्य लगने लगती है, और ऐसी खबरों को लगातार आपके समक्ष पेश किया जाता रहता है , एक कहावत इस कथन पर पूरी तरह खरी उतरती है "झूठी बात को अगर सौ बार सच कहा जाए तो वह सच लगने लगती है". वर्तमान परिवेश में तथ्यों के साथ छेड़खानी करके उसे आपके समक्ष पेश किया जा रहा है.
इस आधुनिक पत्रकारिता के परिवेश में आप लोगो को हमेंशा सावधान रहने की जरुरत है.
हिंदी पत्रकारिता के तीन स्तम्भ लाल , बल, पल ने कभी कल्पना भी नहीं की hogi जिस पत्रकारिता को उनोहोने मिशन के तौर चलाया था वह आज के आधुनिक परिवेश में व्यापार बन चुकी है . आधुनिक पत्रकारिता समाज को एक ऐसे daldal में le जा रहीं है जिससे पार पाना मुश्किल है.
 
लेकिन देश में कुछ ऐसे भी पत्रकार है जो ऐसे अभी मिशन के तौर पर लेकर चल  रहें है जिनमे मेरे मुताबिक की पी.साईनाथ का नाम सबसे ऊपर होना चाहिए.