आधुनिक
पत्रकारिता : एक नज़र में
किसी ने क्या खूब
लिखा है - "यथासमे रोचते विश्वम तथेदं परिवर्तते". कवी या साहित्यकार को
जैसा रुचता है वह संसार को वैसे ही आयाम में परिवर्तित कर देता है .
"साहित्य समाज का
दर्पण है", यह कथन हमने सयाद
कई बुधिजीविओ के जुबानो से सुना होगा परन्तु यह कथन शुरू से ही अप्रासंगिक रहा है
क्योकि अगर साहित्यकार समाज को दर्पण दिखाने का ही काम करता तो साहित्यकार की समाज
में कोई भूमिका एवं उसका कोई मह्त्व नहीं रह जाता, फिर सयाद ही कोई साहित्यकार की तुलना राजा या प्रजापति से
करता. प्रजापति का काम ही समाज एवं राज्य को एक नई दिशा देना है ठीक उसी प्रकार एक
अच्छे साहित्यकार की भूमिका भी समाज
को एक नई दिशा देने का है, ताकि समाज एक
उन्नत पथ पर अग्रषित हो सके.
पत्रकारिता जो की
साहित्य का एक छोटा सा आयाम है, परन्तु इसकी
भूमिका बहुत बड़ी है एवं समाज को अपने क्रियाकलापों से प्रभावित करने में एक बहुत
ही बड़ी भूमिका निभाता है. परन्तु यहाँ कहते हुए अफ़सोस होता है की आधुनिक परिवेश
में जहाँ इसकी सख्त जरुरत अपने इस समाज को है वँहा यहाँ अपने इस समाज से मुँह
फेरता हुआ एक गलत रास्ते पर चल चूका है. अगर गहन तौर पर चिंतन किया जाए तो यह कहना
गलत नहीं होगा की पत्रकारिता ने जो गलत रास्ता अपनाया है वह पूँजीवाद की देन है,
कॉर्पोरेट मीडिया ने समाज में अपनी जड़ता बिखेरे
दी है, पैसे लेकर किसी एक
पक्ष/राजनितिक पार्टी विशेष के हित में खबरों का प्रचार एवं प्रसार किया जा रहा है,
मीडिया चैनल भी दलगत विशेष हो चुके है, जिसका जीता जागता उद्धरण ज़ी न्यूज़ है. राजनितिक
पार्टिया इन चैनेलो के मालिकों को पैसे, पद, प्रतिष्ठा की लालच देकर
अपना एवं अपनी राजनितिक दलों का काम आसानी से करवा रहीं है.
कॉर्पोरेट मीडिया
ने आज के इस आधुनिक परिवेश में अपनी इस तुक्ष पत्रकारिता से समाज में एक नई
मानसिकता को जन्म देने का कार्य क्र रहीं है और यह मानशिकता लोगों को धर्म के आधार
पर एक दुसरे से दूर करने की है , यह मानशिकता लोगो
को किसी एक राजनितिक दल विशेष के पक्ष में रूचि उत्पन्न करने की है इतियादी तरह का
प्रोपगेंडा इन कॉर्पोरेट मीडिया चैनेलो द्वारा समाज की मानशिकताको लेकर चलाया जा
रहा है.
भारत देश जिसको
इतिहास में सोने की चिड़िया कहा जाता था,आज के आधुनिक परिवेश में उस सोने की चिड़िया पर जंग लग चूका है और यह जंग
अत्यधिक जनसँख्या की है, बेरोज़गारी की है,
गरीबी की है ऐसी न जाने कितनी समस्या का बोझ
लेकर देश दबा पड़ा है परन्तु हमारी मीडिया चैनल्स इन समस्याओ की अनदेखी कर के
धार्मिक अशवोहार्दता को बढ़ावा देते हुए " फ़तेह का फतवा " जैसे कार्यकर्म
चलाते है,देश की बड़ी समस्या को
दरकीनार करके हन्नीप्रीत एवं बाबा की खबरें मीडिया में छायी हुई है. झूठी खबरों को लोगो के सामे पेश किया जा रहा है
, हाल ही में घटित हुई घटना
जो की जे एन यु परिषर के अंदर राष्ट्रवाद को लेकर हुई थी उस से सायद आप लोग परिचित
होंगे जिसमे कनहिया कुमार पर राष्ट्र विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा था, एवं कई मीडिया चैनल्स इस मुद्दे को लेकर कनहिया
कुमार को अराष्ट्रवादी सिद्ध करने में लग गए. kannahiya कुमार के विरोध में एक इनके द्वारा एक प्रोपगेंडा चला दिया
गया था उस वक़्त परन्तु यह जो भी खबर कन्हैया कुमार को लेकर मीडिया में चलाई गई थी
सब झूठी खबर साबित हुई एवं कोर्ट के द्वारा कन्हैया कुमार निर्दोष साबित हुआ और
कोर्ट ने यह भी कहा की जिस वीडियो में कनहिया कुमार को राष्ट्र के खिलाफ अप्सब्द
कहते हुए न्यूज़ चैनल्स पर दिखाया जा रहा था वह वीडियो डॉक्टरोव यानी झूठी पायी
गयी. इस घटना से आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है की अपनी न्यूज़ चैनल्स कितने
विश्वसनीय है.
समाज की संवेदनाओ
से कॉर्पोरेट मीडिया एवं न्यूज़ चैनल्स खेल रहें है. कॉर्पोरेट मीडिया ने अपने इस
समाज को एक नई दुनिया दे दी है वह बाहरी रूप से ठीक उसी प्रकार है जैसे - "
एक चूहे को फसाने के लिए जाल के बाहर एक रोटी लागते है ताकि चूहा लालच वश उस रोटी
के पास आये और उस चूहे दानी में फस जाए ठीक इसी प्रकार कॉर्पोरेट मीडिया यही खेल
समाज के साथ खेल रहीं है.
हाल ही में
ब्रिटैन की संसद (सिनेट) में पोस्ट ट्रुथ नामक सब्द पर काफी चर्चा हुई थी. पोस्ट
ट्रुथ सब्द का अर्थ मनोवैज्ञानिक सत्य है जिसका अर्थ यह यह होता की वह खबर जो की
सत्य नहीं होती है परन्तु ऐसे पैस की जाती है की वह खबर आपको मोवैज्ञनिक एवं जहनि
तौर पर सत्य लगने लगती है, और ऐसी खबरों को
लगातार आपके समक्ष पेश किया जाता रहता है , एक कहावत इस कथन पर पूरी तरह खरी उतरती है "झूठी बात
को अगर सौ बार सच कहा जाए तो वह सच लगने लगती है". वर्तमान परिवेश में तथ्यों
के साथ छेड़खानी करके उसे आपके समक्ष पेश किया जा रहा है.
इस आधुनिक
पत्रकारिता के परिवेश में आप लोगो को हमेंशा सावधान रहने की जरुरत है.
हिंदी पत्रकारिता
के तीन स्तम्भ लाल , बल, पल ने कभी कल्पना भी नहीं की hogi जिस पत्रकारिता को उनोहोने मिशन के तौर चलाया
था वह आज के आधुनिक परिवेश में व्यापार बन चुकी है . आधुनिक पत्रकारिता समाज को एक
ऐसे daldal में le जा रहीं है जिससे पार पाना मुश्किल है.
लेकिन देश में
कुछ ऐसे भी पत्रकार है जो ऐसे अभी मिशन के तौर पर लेकर चल रहें है जिनमे मेरे मुताबिक की पी.साईनाथ का
नाम सबसे ऊपर होना चाहिए.