बुधवार, 29 नवंबर 2017

धर्म की समझ


धर्म की समझ 






धर्म को अगर हम समझने की कोशिस करे तो हम उलझन में निश्चित ही उलझेंगे अगर हम इससे तटस्थ नहीं है. यहाँ उलझन हमारी मौलिकता से है, हमारी मनोवैज्ञानिक स्थिति से है. तटस्थता से यहाँ मेरा आशय नास्तिकता से बिलकुल नहीं है क्योकि नास्तिकता को भी उस वक़्त ही स्वीकृति दी जा सकती है जब व्यक्ति खुद नास्तिकता का अनुभव करे नाकि प्रभाव में आकर नास्तिकता का ढोंग करे. धर्म एक धारणा है तो इसे आप जिस नज़रिये से देखते है उसी रूप में परिभाषित कर सकते है. मेरे मुताबिक धर्म शब्द से तातपर्य धारण करने से है. पृथ्वी लोक में लगभग हर कोई, कोई न कोई धर्म धारण करे हुए है. किसी ने इस्लाम की टोपी लगा रखी है तो किसी ने सनातन का भगवा चढ़ा रखा है. कोई गॉड में मदमस्त है तो कोई गुरु नानाक की पगड़ी चढ़ा रखी है. कोई पारसी है तो कोई यहूदी परन्तु ऐसे बहुत कम मनुस्य है जो इनसे तटस्थ है और इन लोगो ने अपने आपको इन धर्मो की गंगा में बहने की बाजए आपने आपको किसी किनारे पर खड़ा कर लिया है. रामधारी सिंह दिनकर ने ऐसे लोगो को आउटसाइडर कहा है.
आज के आधुनिक( यहाँ आधुनिक कहने से मेरा अभिप्राय तकनीकी से है ) परिवेश में पृथ्वी के इस विश्वग्राम में धर्मो ने अपनी जड़े मनुस्य के मानशिक स्तर पर बिखेर रखी है यही एक कारन है की हर मनुस्य का अपने अपने धर्म के प्रति अंधश्रद्धा है, और ऐसे लोगो की लोगो की सोचने अवं समझने की शक्ति भी नाम मात्र की कही जा सकती है. इसी वजह से इन विभिन्न धर्मो में इनके ठेकेदार बैठे हुए है अवं धर्म में जो थोड़ा बहुत ठीक भी है उसे भी अपने मुताबिक तोड़ मरोड़कर कर इन लोगो के समक्ष उतार कर इनका शोषण कर रहे है.
इतिहास भी इस कथन का साक्ष्य है कि किस प्रकार क्रिस्चियन धर्म ग्रंथो में "पाप स्वीकरोक्ति दस्तावेज बना कर इन मासूम लोगो को ठगा जाता था.

आइए गहराई से इस बात को समझने के लिए हम दो उद्धरणों को देखते है
क्रिस्चियन धर्म ग्रंथो में यह लिखित था कि "पृथ्वी इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड का केंद्र है अवं सभी गृह, तारे, और नक्षत्र इसके इसके इर्द गिर्द परिकर्मा करते है"  परन्तु कॉपरनिकस ने जब इस कथन को अपनक वैज्ञानिकता के जोर से परास्त कर दिया तब उसे गिरफ्तार कर लिया गया अवं उस पर यह दबाव बनाया जाने लगा कि यह बाते जो उसने कही है वह सब झूठी है अवं चर्च में जाकर गॉड से क्षमा मांगे अवं सबके सामने अपना गुनाह कबूल करे, तब कॉपरनिकस ने उन धर्म के ठेकेदारों से कहा कि चाहे आपका धर्म ग्रंथो के अक्षर कुछ भी कहते हो लेकिन वैज्ञानिकता तो कुछ और ही कहती है और यही सचाई भी है. ऐसी भद्दी भद्दी बाते दुनिया के तमाम धर्म ग्रंथो में समाहित है . किसी धर्म ग्रंथो में कोई सूर्य को निगल रहा है तो किसी धर्म ग्रंथो में शरीयत के जरिये किसी व्यक्ति की मौलिकता को ख़त्म कर दिया जा रहा है.
एक बार की बात है, बुद्ध जंगल में कही जा रहे थे कि उनोहने देखा कि एक के पीछे पीछे एक जानवर आगे की दिशा में भागे जा रहे है. सुरुवात बुद्ध यह समझ नहीं पाए अवं जानने कि इच्छा से वे उन भागते हुए जानवरो के पास पहुंच अवं उनोहने एक हिरन को पकड़ा और पुछा ऐसा क्या हो गया जो तुम सब एक के पीछे एक भागे जा रहे हो तब उसने कहा प्रलय आने वाली है, तब बुद्ध ने उससे पूछा किसने बताया तब उस हिरन ने कहा मेरे आगे वाले ने बुध ने इस रहस्य को सुलझाने के लिए यही सवाल आगे से पुछा तब उस आगे वाले ने भी बुद्ध को यही उत्तर दिया. बुद्ध ने इस रहस्य सुलझाने के लिए सबसे आगे वाले से संपर्क किया सबसे आगे एक खरगोश भाग रहा थाम, बुद्ध ने उस खरगोश से पूछा कि क्या हुआ क्यों भागे जा रहे हो तब उस खरगोश ने बुध से कहा कि परलये आने वाली है तब बुद्ध ने पुछा किसने कहा कि परलये आने वाली है, तब खरगोश ने कहा कि मेरी माँ ने बताया था कि जब धरती हिलेगी तब परलये आएगी, तब बुद्ध ने उस खरगोश से कहा कि तुझे कब ज़मीन हिलते हुए महसूस हुई तब उस खरगोश ने कहा - जब में पेड़ के नीचे सो रहा था, तब बुद्ध ने कहा - कि कही कोई दाल तेरे अगल बगल गिर गयी होगी सयाद उससे तुझे  धरती हिलते हुए महसूस हो गयी होगी तब खरगोश ने कहा - ऐसा भी हो सकता है सयाद.
यही हाल हाल धर्मो का है मनुस्ये अपने पूर्वजो कि कही सुनी बाते जो धर्म को लेकर कही गयी है उन्हें मानता चला आ रहा है और आगे आने वाली पीढ़ी के समक्ष उतार रहा है अगर हम चाहकर भी इस धर्म कि सत्यता का पता लगाना चाहे ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार बुद्धा ने परलय के रहस्य का पता लगाया था तब भी हम पता नहीं लगा सकते है क्योकि हमे आगे कि कड़ी में मुर्दा लोग ही मिलेंगे.
मनुस्य बिना सत्य तलाशे ही अंध श्रद्धा में जीते चला आ रहा है भले ही उसके धर्म ग्रंथो कि बाते वैज्ञानिक स्तर पर कभी सत्ये साबित ना हो परन्तु यह बाते मनुस्ये केमानशिक स्तर को प्रभावित कर रही है.
मनुस्य का सबसे बड़ा डर हे "मृत्यु" और धर्म ने इस नब्ज को बड़े ही अच्छे ढंग से पकड़ कर मनुस्य का शोषण कर रहा है. तभी तो हमें हर धर्म ग्रंथो में "स्वर्ग" और "नर्क" की बाते सुन सकते है.
अगर हमें सच में इश्वरिये अश्तित्व या कहे सत्य की तलाश है तो हमे खुद ही इसे तलाशना होगा, हमे प्रकृति से जुडी हर एक पदार्थ को समझना होगा तभी हम उस सत्य को तलाश कर सकते है. नाकि उस भीड़ की तरह जो बिना देखे सुने ही उस अन्ध्सरद्धा में पड़ी है.